मई 2025 संस्करण #70 (हिंदी प्रकाशन)
चौपाल 2025 – नई और गहरी यात्राओं के बारे में है।
आइए हम वहां मिलते, जहाँ दिल मिलते हैं, विचार जुड़ते हैं, और उम्मीदें उड़ान भरती हैं।
गरिमा के साथ हर कदम
जब हम आपदा के बारे में सोचते हैं, तो आमतौर पर हमें कुछ ऐसी घटनाएँ याद आती हैं जो अचानक होती हैं और आसानी से दिखाई देती हैं, जैसे बाढ़, तूफान या भूकंप। लेकिन कई आपदाएँ ऐसी होती हैं जो न तो सुर्खियों में आती हैं और न ही इनके लिए कोई अलर्ट होते हैं। ये आपदाएँ धीरे-धीरे और चुपचाप होती हैं, और अक्सर हम इन्हें पहचान नहीं पाते। उदाहरण के लिए, एक गर्मी की लहर ( लू ) जो हफ्तों तक चलती है, या एक ठंडी रात जब गर्म कपड़े न हो—ये भी आपदाएँ हैं। इसका प्रभाव धीरे-धीरे होता है, और यही कारण है कि इसे नजरअंदाज किया जाता है। लेकिन यह लाखों लोगों को प्रभावित करता है, खासकर उन समुदायों को जिनके पास सीमित संसाधन होते हैं और जो अत्यधिक तापमान और मौजूद सुविधाओं की कमी से जूझ रहे होते हैं।
पिछले दो दशकों से अधिक समय से गुंज आपदा के दौरान राहत और पुनर्वास के कार्यों में सबसे आगे रहा है। साथ ही, हम लगातार इस दिशा में भी काम कर रहे हैं कि समुदाय ऐसी स्थितियों का सामना करने में खुद सक्षम बनें। हम शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में विभिन्न सहयोगियों के साथ मिलकर एक ऐसी योजना बना रहे हैं, जो आपदा से पहले जागरूकता और तैयारी को सुनिश्चित करें। इसके साथ ही, हम यह भी सुनिश्चित कर रहे हैं कि पहले से जुटाए गए संसाधनों को ज़रूरत पड़ने पर तुरंत लोगों तक पहुँचाया जा सके। हमारा उद्देश्य यह है कि प्रभावित समुदायों तक सहायता केवल बड़ी और साफ दिखाई देने वाली आपदाओं के समय ही नहीं, बल्कि उन धीमी और अक्सर अनदेखी रह जाने वाली आपदाओं के समय भी पहुँचे।
ऑक्सफोर्ड में गूंज की पहल: आपदाओं को नए नजरिए से देखने की बातचीत
इस साल ऑक्सफोर्ड में हुए स्कॉल वर्ल्ड फोरम के दौरान गुंज ने दो खास आयोजन किए। पहला एक प्रभावशाली संवाद जिसका विषय था — “विभिन्न क्षेत्रों के साझे प्रयास: जलवायु आपात स्थितियों के प्रति समाज की प्रतिक्रिया को नए तरीके से देखना“। इस चर्चा में दुनिया भर से कई प्रेरणादायक नेता और काम करने वाले लोग शामिल हुए — जेरू बिलिमोरिया, सोफिया ओटू, गैबी अरेनास डी मेनेसेस, टॉम वेन, संजय पुरोहित और डेविड बॉनब्राइट।
यह बैठक इसलिए रखी गई थी ताकि हम एक नई सोच के साथ आगे बढ़ें — जहाँ हम दान या सिर्फ सहयोग करने की जगह, मिलकर साथ काम करने पर ध्यान दें। हमारा मकसद सिर्फ तुरंत राहत देना नहीं है, बल्कि ऐसा समाज बनाना है जो लंबे समय तक खुद को संभाल सके और हर मुश्किल के लिए तैयार रहे। यह पहल SARRD — ‘सोइटल अलाएंस फॉर रेसिलिएंस एंड रेस्पॉन्स टू डिजास्टर’ — के तहत चलाई जा रही है। इसमें देशभर के ऐसे लोगों, संगठनों और संस्थानों को एक साथ लाने की बात की जा रही है, जो यह मानते हैं कि बाढ़, गर्मी, सूखा जैसी आपदाओं का सामना करने के लिए तैयारी पहले से होनी चाहिए। इसके लिए ज़रूरी है कि हम समय रहते जागरूकता फैलाएँ, पहले से योजना बनाएं और जिम्मेदारी आपस में बाँटें। इस पहल का मकसद है कि लोग मिलकर संसाधन जुटाएँ, शहर और गाँव साथ आएं, एक-दूसरे से सीखें और अपने इलाकों को इतना मजबूत बनाएं कि जब कोई मुश्किल समय आए, तो हम सब मिलकर उसका सामना कर सकें। इस तरह हमारा समाज लंबे समय तक टिकाऊ और मजबूत बन पाएगा।
SARRD के बारे में अधिक जानकारी के लिए और जलवायु परिवर्तन की इस यात्रा में हमारे साथ जुड़ने के लिए लिंक पर क्लिक करें।
इस चर्चा के साथ-साथ लगी फोटो प्रदर्शनी -“आपदाएँ: मिथक और सच्चाई” ने भी लोगों को गहराई से छुआ। यह प्रदर्शनी गुंज और ग्राम स्वाभिमान के संस्थापक अंशु गुप्ता के ज़मीन से जुड़े तीन दशकों के अनुभव पर आधारित थी। इसमें भारत के आपदा प्रभावित इलाकों के लोगों की हिम्मत, आत्मनिर्भरता और अपने बल पर की गई कोशिशों को तस्वीरों के ज़रिए दर्शाया गया। प्रदर्शनी ने विभिन्न क्षेत्रों से आए दर्शकों के बीच गहरी भावनाएं और सार्थक बातचीत को जन्म दिया। यह हमें याद दिलाती है कि हर आपदा की खबर के पीछे आशा और आत्मबल से भरी हुई एक इंसानी कहानी होती है।
इस प्रदर्शनी में एक खास मेहमान भी आए — बिल ड्रेटन, जो अशोका के संस्थापक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं। उन्हें इस साल स्कॉल वर्ल्ड फोरम में प्रतिष्ठित ग्लोबल ट्रेज़र अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया।
ज़मीन से जुड़ी कहानियाँ
जानिए कैसे गूंज की जमीनी स्तर पर की गई कोशिशें, समुदाय की अपनी मेहनत, सम्मान और स्थानीय समझ के साथ अपने क्षेत्रों में सकारात्मक बदलाव ला रहे हैं।
एकता और हिम्मत की कहानी: कैसे चिमला गाँव ने पानी की परेशानी को हल किया
जलवायु से जुड़ी मुश्किलें बढ़ रही थीं, लेकिन मध्य प्रदेश के अशोकनगर से 40 किलोमीटर दूर चिमला गाँव के लोगों ने हार नहीं मानी। सबने मिलकर एक पुरानी झिरिया (छोटा पारंपरिक जलस्रोत) को दोबारा ठीक किया। ये काम सिर्फ पानी जुटाने तक सीमित नहीं था, बल्कि उन्होंने अपने गाँव के लिए एक मजबूत हल ढूंढ लिया।
जब गाँव ने मिलकर बनाई अपनी सुरक्षा की दीवार
असम के बाढ़ प्रभावित चारनचुक पापुंग क्षेत्र में, जहाँ ब्रह्मपुत्र नदी का जलस्तर हर साल बढ़ता है, यहाँ के लोगों ने यह दिखाया कि उनका स्थानीय ज्ञान और अनुभव कई स्थायी समाधानों का मार्गदर्शन कर सकता है। जब गूंज ने लोगों को खुद के फैसले लेने के लिए प्रेरित किया, तो उन्होंने मिलकर एक ऊँचा सामुदायिक घर बनाने का निर्णय लिया। यह घर इस क्षेत्र की मिशिंग जनजाति के पारंपरिक खंभों पर बने घरों से प्रेरित था, जो बाढ़ के पानी से सुरक्षित रहते हैं।
बदलाव की बीज: सुल्लंगुडी गाँव की महिलाएँ हर बीज बॉल से प्रकृति को फिर से बहाल कर रही हैं
यह कहानी तमिलनाडु के सुल्लनगुड़ी इलाके की है। जब वहाँ मानसून की बारिश आई, तो सिर्फ पानी ही नहीं आया, बल्कि औरतों में एक साथ मिलकर काम करने का जोश भी आ गया। जब “गूंज” नाम की संस्था ने वहाँ की लोकल जनता को जोड़ना शुरू किया, तो गाँव की 75 महिलाएं एक साथ आईं। उन्होंने गाँव की एक ज़रूरी पानी की नाली को साफ किया और 4000 बीज बॉल बनाए। इन बीज बॉल में देशी (स्थानीय) बीज भरे गए थे, ताकि गाँव की प्रकृति को फिर से हरा-भरा किया जा सके।
अप्रैल में
देहरादून चौपाल 2025 दिल से जुड़ी हुई मुलाकात थी, जिसमें पुराने दोस्त, स्वयंसेवक और नए लोग एक साथ आए। ये एक ऐसा मौका था जहाँ हम सबने ज़मीन से जुड़ी कहानियाँ, असल ज़िन्दगी की सच्चाइयाँ और क्या किया जा सकता है, इसके बारे में बात की। इस दिन शिक्षा, पानी, स्वास्थ्य, मासिक धर्म जैसे मुद्दों पर चर्चा की गई। इन समस्याओं को सिर्फ एक बोझ की तरह नहीं, बल्कि हम सभी की जिम्मेदारी के रूप में देखा गया। “सोचता हूँ किताब – वॉल्यूम 2” को बुजुर्गों के बीच में लॉन्च किया गया, जो हमारे लिए एक बहुत भावनात्मक पल था। इस मौके पर कलाकार सौरभ का कबीर भजन हॉल में गूंज उठा, जो हमें ये सिखाता है कि बदलाव तब शुरू होता है जब आम लोग दिल से और साहस के साथ कदम उठाते हैं।
आगामी कार्यक्रम
मासिक धर्म संवाद 2025 में भाग लें, हमारे साथ जुड़ें।
31 मई, 2025 – इस तारीख को अपने कैलेंडर में ज़रूर नोट कर लें!
यह एक वार्षिक संवाद है, जिसमें सहयोगकर्ता, शोधकर्ता, जमीनी स्तर पर काम करने वाले और अन्य सभी लोग एक साथ आते हैं। इसका उद्देश्य है कि हम मिलकर तेज़ी से बदलते इस समय में मासिक स्वास्थ से जुड़ी समस्याओं का हल ढूंढें।
हम यह समझने की कोशिश करेंगे कि अनुसंधान, नीतियाँ और जमीनी स्तर पर किए गए प्रयासों में क्या अंतर है, ताकि हम एक ऐसा समाधान पा सकें, जो न केवल प्रभावी हो, बल्कि हर किसी तक पहुँच सके और स्थायी बदलाव ला सके।
“तेज़ी से बदलती दुनिया में मासिक धर्म से जुड़े नवाचार, चुनौतियाँ और नई संभावनाएँ”
सफ़रनामा
वॉलंटियर्स द्वारा बनाया गया न्यूज़लेटर
हमें यह साझा करते हुए खुशी हो रही है कि देशभर के अलग-अलग शहरों से गूंज के वालंटियर मिलकर एक न्यूज़लेटर तैयार कर रहे हैं, जो देश के कोने-कोने में फैले ‘अच्छे काम करने वालों’ की कहानियों और अपडेट को एक साथ ला रहा है।
इन प्रेरणादायक झलकियों से रूबरू होने के लिए जुड़े रहिए ‘डिग्निटी डायरीज़’ के अगले संस्करण में।