मार्च 2025 संस्करण #68 (हिंदी प्रकाशन)
हमने 18 फरवरी को पूरे भारत में ‘क्लॉथ डे’ मनाया। इस दिन हमने प्रेरणादायक कहानियाँ साझा कीं, ‘गूंज की गुल्लक’ बनाई और यह प्रदर्शित किया कि कपड़ा सिर्फ एक साधारण वस्तु नहीं बल्कि इसके पीछे गहरी भावनाएँ और अर्थ छिपे हैं। हम इसमें शामिल होने वाले सभी लोगों का हार्दिक आभार व्यक्त करते हैं। आइए इस पहल को जारी रखें, यह केवल एक कपड़े का टुकड़ा नहीं, बल्कि यह इससे कहीं अधिक हो सकता है। अधिक जानकारी के लिए कृपया www.cloth.day पर जाएँ।
गूंज चौपाल का आयोजन जगह-जगह होना शुरू हो गया है! चौपाल गूंज का एक वार्षिक कार्यक्रम है। यह एक खास जगह है जहाँ समाज सुधारक और जागरूक नागरिक एक साथ मिलकर सामाजिक मुद्दों पर चर्चा करते हैं। यहां हम समस्याओं पर सोचते हैं और उन्हें हल करने के लिए कदम उठाते हैं। यह एक ऐसा अवसर है जहाँ हम मिलकर जश्न मनाते हैं, एक-दूसरे से जुड़ते हैं और बदलाव लाने के लिए एकजुट होते हैं।
क्या उम्मीद करें?
- नई शुरुआत और गहरी बातें – अंशु गुप्ता गूंज और ग्राम स्वाभिमान के संस्थापक के साथ गहरी और विचारपूर्ण बातचीत।
- आपदाएँ – झूठ और हकीकत – आपदाओं के पीछे की सच्चाई दिखाने वाली एक फोटो प्रदर्शनी।
- लंच के बाद की योजना बैठक – मुख्य स्वयंसेवकों (Volunteers) और शुभचिंतकों के साथ क्षेत्रीय योजनाओं और आगे के रास्ते पर एक ध्यान केंद्रित चर्चा।
हमारी अगली चौपाल इस मार्च कोलकाता में होने वाली है!
Join us at Kolkata Chaupal, where ideas brew like chai, and debates echo through the streets. Then, in April, we’re heading to Dehradun! Invite your family and friends to participate.
2025 की मुंबई चौपाल दिलों से जुड़ी सभा थी, जहां पुराने दोस्त, स्वयंसेवक (Volunteers) और नए सदस्य एक साथ आए। हमने नई यात्राओं पर बात की। गूंज एलायंस फॉर रैपिड रिस्पॉन्स ऑन डिसास्टर (GARRD) को मजबूत करने से लेकर, हमारे नेटवर्क में एक साथ एकत्रित किये गए सामग्री और टीम 5000 की साझेदारी के माध्यम से नए अवसरों का विस्तार करने तक। एक खास पल तब आया जब अंशु गुप्ता ने ग्राम स्वाभिमान के बारे में बात की, जिससे ये एहसास हुआ कि लोगों और उनकी क्षमता को सही तरीके से समझने के लिए एक नई भाषा की कितनी आवयश्कता है।
2005 से, गूंज ने शहरी संसाधनों और समुदाय की भागीदारी को एकजुट कर महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाकों में सतत विकास को बढ़ावा दिया है। गूंज की महाराष्ट्र में प्रमुख पहलें:
- जल संरक्षण: वर्षा जल संचयन, कुएं की सफाई और पानी के स्रोतों का प्रबंध।
- जीविका पुनर्निर्माण: किसानों, नाईयों और कारीगरों को व्यवसायिक किट प्रदान किया गया।
- मासिक धर्म स्वास्थ्य: चुप्पी तोड़ो बैठकों के जरिए माहवारी जैसे विषयों पर खुलकर बातचीत हुई और गूंज माय पैड किट प्रदान किये गये।
- शिक्षा: बच्चों तक स्कूल की सामग्री पहुंचाना और स्कूलों के इंफ्रास्ट्रक्चर को बेहतर बनाना।
- आपदा राहत: राहत पहल के जरिए आपदाग्रस्त इलाकों में सहायता और पुनर्वास का काम।
- पर्यावरण संरक्षण: वृक्षारोपण और किचेन गार्डन का निर्माण करना।
हमारी राज्य रिपोर्ट पढ़ें, जिसमें महाराष्ट्र में हमारे काम के नवीनतम अपडेट्स दिए गए हैं (लिंक)
हमारा दृष्टिकोण समुदाय की भागीदारी पर आधारित है, जहां लोग अपनी मेहनत और जमीनी स्तर का ज्ञान साझा करते हैं और स्थानीय संसाधनों का उपयोग करके ग्रामीण विकास को बढ़ावा देते हैं। हम शहरी स्वयंसेवकों, कॉर्पोरेट साझेदारों और ग्रामीण जमीनी स्तर के संगठनों के साथ मिलकर काम करते हैं ताकि महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाकों में स्थायी प्रभाव सुनिश्चित किया जा सके।
कुछ प्रेरणादायक कहानियाँ पढ़ें, जो सम्मानजनक विकास और समुदाय की मजबूती को दिखाती हैं।
आशाबाई यादव, एक दैनिक मजदूरी करने वाली किसान श्रमिक हैं, जो गूंज की पहल में शामिल हुईं, ने कहा: “कोविड के दौरान, गन्ने की फसल के मौसम में मिलने वाला काम पूरी तरह से रुक गया था। लेकिन अब हम गूंज में काम कर रहे हैं और रोज़ाना 200 रुपये कमा रहे हैं। हम 40 महिलाओं का एक समूह हैं, और पंद्रह दिनों तक यहाँ काम करते हैं। बाकी के दिनों में हम पास के गांवों में काम करते हैं, जिससे हमारे परिवार के खर्चे पूरे हो जाते हैं। अब हमें काम की तलाश में बाहर नहीं जाना पड़ता हैं।”
बीड के किसानों ने पलायन के संकट को कैसे हल किया? जानिए उनकी संघर्ष और पुनर्निर्माण की प्रेरणादायक कहानी।
गूंज का स्कूल टू स्कूल पहल इस अंतर को भरता है, जहां शहरी इलाकों से अधिक इस्तेमाल न हुई स्कूल सामग्रियों को ग्रामीण स्कूलों में भेजा जाता है। यह दान के रूप में नहीं, बल्कि सकारात्मक बदलाव के लिए एक इनाम के रूप में किया जाता है।
एक समय अनदेखा किया गया पश्चिम मेदिनीपुर का आंधरीसोल प्राथमिक स्कूल अब बदलाव और उम्मीद की एक बेहतरीन मिसाल बन चुका है। गूंज और समुदाय की भागीदारी से एक लाइब्रेरी, एक कंप्यूटर, और एक्स्पोसर विजिट शामिल किए गए। बच्चों ने स्वच्छता, स्वास्थ्य और जिम्मेदारी को अपनाया, और इसके परिणामस्वरूप स्कूल में 100% नामांकन हुआ। हेड टीचर हरिश चंद्र बेरा बताते हैं, जिन्होंने स्थायी बदलाव लाने के लिए कड़ी मेहनत की, “छात्रों की भागीदारी और समुदाय की जागरूकता सुनिश्चित करने के लिए जरूरी सामग्री की आवश्यकता होती है। पश्चिम बंगाल से लेकर उत्तराखंड और बिहार तक, अनगिनत स्कूल हमारे “स्कूल टू स्कूल” पहल के तहत इसी तरह के बदलावों का अनुभव कर रहे हैं।
हम “खुशियों का रीसायकल” अभियान के साथ एक बार फिर वापस आए हैं, जो School to School पहल का एक अहम हिस्सा है। इस पहल के तहत, हम शहरी इलाकों से इस्तेमाल की गई स्कूल सामग्री को ग्रामीण स्कूलों में भेजते हैं। यह न केवल जरूरी सामग्री उपलब्ध कराता है, बल्कि बच्चों में आत्मसम्मान और प्रेरणा भी बढ़ाता है।
हमसे जुड़िए, खुशियाँ फैलाएं और शिक्षा के फर्क को खत्म करने में हमारी सहायता करें।